कई बार ऐसा होता है कि एक पत्रकार सिर्फ वह पत्रकार है इसलिए किसी भी काम मे व्यवधान डालने अथवा धन उगाही के उद्द्येश्य से किसी भी व्यक्तिविशेष या संस्था के प्रति मनगढ़ंत खबरों का प्रकाशन प्रारम्भ कर देता है। चूंकि पत्रकारों को उनके अभिव्यक्ति एवं प्रकाशन के लिए संवैधानिक अधिकार(Constitutional Right) मिले हुए है परन्तु ऐसे मामलों में उन कानूनी अधिकारो का दुरुपयोग माना जाता है।
अतः अपनी पत्रकारिता का दुरुपयोग करने वाले पत्रकारों को इस बार सरकार ने अपने घेरे में ले लिया है।
केंद्र सरकार के सूचना प्रोद्योगिकी मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि न्यूज मीडिया(News Media) की स्वतंत्रता असीमित है, लेकिन उन्हें जवाबदेह बनाना भी बेहद जरूरी है। उन्हें भी अखबारों और टीवी चैनलों की तरह ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली हुई है, लेकिन इन्हें अपने दायरों में मिली हुई जिम्मेदारियों का भी ध्यान देना पड़ेगा।
रविशंकर प्रसाद ने कहा कि;
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की कोड(Press Council of India), टीवी चैनलों के प्रोग्राम कोड, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स स्टैडर्ड अथॉरिटी के नियमों और आईटी एक्ट की तरह ही नियमों का पालन करना होगा। इनके खिलाफ हुई शिकायतों को पत्रकारिता की नैतिकता के आधार पर जांचा जाएगा। यानी गलत खबरें और किसी की छवि खराब करने पर डिजिटल मीडिया प्रकाशक(Digital Media Publishers) पर भी कानूनी कार्रवाई होगी। जिस प्रकार अभी गलती करने पर टीवी चैनल माफी मांगते हुए स्क्रॉल दिखाते हैं, वैसा ही ओटीटी और डिजिटल न्यूज मीडिया के लिए भी किया जा सकता है। साथ ही पहले से तय कानून के दायरे में आने पर उनके खिलाफ दंड का भी प्रावधान होगा।
वहीं भारत सरकार के, प्रकाश सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि;
सरकार को नहीं पता कि देश में कितने डिजिटल न्यूज मीडिया हैं। नई गाइडलाइन आने के बाद उम्मीद है कि इनकी गणना हो सकेगी और उन्हें भी कानूनी दायरों में लाया जाएगा।
क्या कहते हैं प्रेस से सम्बंधित कानून।
सरकार ने पत्रकारिता(Journalism) के होने वाले दुरुपयोग को देखते हुए प्रेस सम्बंधित कानून(Press Laws) तैयार किए है, जहाँ प्रेस के कानून पत्रकारों के लिए कुछ विशेषाधिकारों का प्रावधान करते है वहीं उन्हें कुछ कर्तव्यों के लिए बाध्य भी करते है। समाज के सुचारू रूप से संचालन के लिए सरकार को अनेक कानून बनाने पड़ते है। भारत के संविधान में सभी नागरिकों को प्रेस की आजादी का गारंटी दी गई है। परन्तु देश की सुरक्षा और एकता के हित में और विदेशों से सम्बन्धों तथा कानून और व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता या अदालत अवमानना, मानहानि या अपराध को प्रोत्साहन के मामलों में इस अधिकारो पर राज्य द्वारा अंकुश लगाया जा सकता है। यह कानून प्रेस पर भी लागू होते है जो निम्न प्रकार है।
मानहानि का दावा
हमारे कानून की भारतीय दण्ड संहिता (1860) की धारा 399 के अनुसार;
राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक के अपना ईमानदारी, यश, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान आदि के सुरक्षित रखने का पूरा खधिकार प्राप्त है। इस कानून के अनुसार जो कोई या तो बोले गए या पढ़े जाने के आशय से शब्दों या संकेतो द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में इस हादसे से लांछन लगता है तथा ऐसे लांछन से व्यक्ति की ख्याति की हानि होगी तो वह मानहानि का दावा कर सकता है एवं दावा साबित होने पर दोषी को 2 वर्ष की साधारण कैद या जुर्माना या दोनों सजा दी जा सकती है।
इसलिए पत्रकारिता के नजरिये में भी पत्रकारों को इस मामले में सचेत रहना जरूरी है की वो अनावश्यक किसी को बदनाम करने के उद्द्येश्य से खबरों का प्रसारण न करें। अब प्रमाणित खबर के रूप में, सुनी सुनाई बातों के आधार पर किसी पर आरोप नहीं लगाया जाना चाहिए।
अतः पत्रकारों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि गलत पत्रकारिता करने से उनके ऊपर भी लीगल एक्शन लिया जा सकता है।
सदन के सदस्यों के विशेषाधिकार
इस पूरी दुनिया के लगभग सभी देशों के संसद तथा विधान मंडलों के सदस्यों को कुछ विशेष प्रकार के अधिकार प्राप्त है जिसमे भारत में यह विशेषाधिकार सन् 1833 से किसी न किसी रूप में मौजूद है। भारत मे मौजूद इस विशेषाधिकार की बात करें तो;
यदि संसद की कार्यवाही को तोड़-मरोड़ कर उस पर अनुचित या निंदाजनक टिप्पणी करके संसद की कार्यवाही से निकाली गई बातों को प्रकाशित करने पर उनके विशेषाधिकार के हनन का मामला बनता है।
सदन के सदस्यों का यह विशेषाधिकार पूरी तरह से पत्रकारों को निशाना बनाता है।
माननीय न्यायालय की अवमानना
भारत में सन् 1971 में न्यायालय की अवमानना का नया कानून पारित किया गया था। अगर इस कानून के बारे मे बात की जाए तो यह कानून अत्यंत व्यापक है तथा थोड़ी भी लापरवाही, संपादकों और पत्रकारों को मुसीबत में डाल सकती है क्योंकि न्याय प्रणाली की पवित्रता और विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए यह कानून बनाया गया है। ऐसी परिस्थितियां निम्नलिखित है-
न्यायालय की अवमानना कि स्थिति:-
- अगर न्यायालय(Supreme Court Of India) के न्यायाधीश पर बिना औचित्य और आधार का कोई आरोप लगाया जाए अथवा उनके चरित्र के हनन का प्रयास किया जाए तो यह माननीय न्यायालय की अवमानना है।
- न्यायपालिका की प्रतिष्ठा, गरिमा, अधिकार अथवा निष्पक्षता पर किसी भी प्रकार का संदेह करना माननीय न्यायालय की अवमानना है।
- बेतार्किक मामलों में संबंधित जज, अधिवक्ताओं तथा साक्षियों को प्रभावित करने का प्रयास करना अथवा उन पर किसी भी प्रकार के आक्षेप लगाना माननीय न्यायालय की अवमानना है।
- माननीय न्यायालय की कार्यवाही की बगैर अनुमति वहां की रिपोर्ट चोरी-छिपे प्रकाशित करना माननीय न्यायालय की अवमानना है।
प्रेस परिषद का अधिनियम भी पत्रकारों को सावधान करता है
भारत में समाचार पत्रों तथा समाचार समितियों के स्तर में सुधार एवं विकास तथा प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने की आवश्यकता महसूस करते हुए भारतीय संसद ने सन् 1978 में प्रेस परिषद अधिनियम पारित किया। इसके उद्देश्य निम्नलिखित है।
- समाचार पत्र तथा समाचार समितियों की स्वतंत्रता को कायम रखना।
- महत्वपूर्ण तथा जनरुचि के समाचारों के प्रकाशन पर, संभावित रुकावटों पर नजर रखना।
- शीर्ष नेतृत्व के अनुसार पत्रकारों के लिए अचार संहिता तैयार करना।
- भारतीय समाचार पत्र तथा समाचार समितियों को मिलने वाली विदेशी सहायताओं का मूल्यांकन करना।
- पत्रकारिता से संबंधित व्यक्तियों में उत्तरदायित्व की भावना तथा जनसेवा की भावना को विकसित करना।
उक्त मामलों में भी पत्रकारो को अपने दायित्वों का ध्यान रखते हुए पत्रकारिता करना चाहिए।
मुद्रण रेखा
संपादक और मुद्रक के दायित्वों को कानून की दृष्टि से वैध बनाने के लिए समाचार पत्र(Newspaper) के किसी पिज पर ज्यादातर अंतिम पेज के किसी किनारे पर; संपादक, मुद्रक, प्रकाशक, प्रेस एवं कार्यालय का नाम तथा पते का विवरण देने जगह तय है। इस विवरण को मुद्रण रेखा के नाम से भी जाना जाता है। जिसमे किसी भी पाठक को अखबार के किसी प्रकाशन से समस्या हो तो वो अपने कानूनी अधिकारों का प्रयोग कर सकता है।
निष्कर्ष
हमारा भारत देश एक न्यायप्रिय देश है जहाँ का संविधान देश के हर नागरिकों को उनकी सुरक्षा के दृष्टिगत मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
जिस प्रकार पत्रकारों को देश के संविधान ने तमाम प्रकार के अधिकार प्रदान किए है ठीक वैसे ही उन्हें दिए गये कानूनी अधिकारो के दुरुपयोग किए जाने पर एक दायरा भी बना दिया है। वह दायरा उन लोगों तथा संस्थाओं के मौलिक अधिकार है जिनको पत्रकारिता का दुरुपयोग करते हुए टारगेट किया जाता है।