भारत में आगामी वक्त में अनेक राज्यों का चुनाव होने जा रहा है जिसकी वजह से चुनावी सरगर्मियां बढ़ गयी है। वह पत्रकार जो इन चुनावों पर रिपोर्टिंग(News Reporting in Elections) करने जा रहे हैं उन्हें होने वाले, शारीरिक हमलों, डराने की कोशिश, उत्पीड़न; इंटरनेट पर डराना, कोविड-19 संक्रमण, गिरफ़्तारी, नज़रबंदी, रिपोर्टिंग पर सरकारी प्रतिबंध, इंटरनेट पर रोक, इत्यादि रुकावटों और ख़तरों की जानकारी होनी चाहिए। चुनावी रिपोर्टिंग के लिए हमने एक डेटा बेस तैयार किया है जो आपके चुनावो के दरमियान पत्रकारिता करने के लिए सहायक होंगी। बस अंत तक बने रहिए।
पत्रकार चुनाव रिपोर्टिंग करते वक्त निम्न बातों का अनुसरण करें।
- लोकतांत्रिक चुनावों को स्वतंत्र, निष्पक्ष और विश्वसनीय होना चाहिए।
- चुनाव आचार संहिता के अनुसार चुनाव कराना तथा मतदाताओं को सभी आवश्यक सूचनाएं प्रदान करना अनिवार्य है।
- खोजी पत्रकारों वह देखना चाहिए, जो होना चाहिए, और वास्तव में जो हो रहा है, इसके बीच क्या कोई कमी है।
- जनाकांक्षाओं से खिलवाड़ के पीछे दोषी कौन लोग हैं?
- चुनाव आचार संहिता का कितना अनुपालन हो रहा है?
चुनावी रिपोर्टिंग(Reporting During Elections) के पक्ष में विशेषज्ञों का कहना है कि पत्रकारों को चुनावी रिपोर्टिंग की पूर्व-तैयारी जरूर करनी चाहिए। उन्हें चुनाव आचार संहिता और चुनावों को नियंत्रित करने वाले नियम-कानून सीखना चाहिए। अपने डेटा और स्रोतों को सुरक्षित रखने के लिए टूल और तरीकों का निर्धारण पहले ही कर लेना चाहिए। इसके अलावा, राजनीतिक प्रवृत्तियों, स्रोतों और खतरों को सूचीबद्ध करना चाहिए। इससे पत्रकारों को महत्वपूर्ण जांच करके अच्छी खोजी खबरें निकालने में मदद मिल सकती है। इसलिए चुनावी रिपोर्टिंग में जाने से पहले अच्छे से इन बातों को गांठ बांध लेना चाहिए।
चुनावी रिपोर्टिंग से संबंधित जरूरी बातें
- भावनात्मक मुद्दों पर आधारित पत्रकारिता से बचें।
- प्रमुख उम्मीदवारों पर केंद्रित घुड़दौड़ पत्रकारिता से भी बचें।
- मतदाताओं की जिंदगी को प्रभावित करने वाली नीतियों पर ध्यान केंद्रित करें।
चुनावी रिपोर्टिंग में उत्पीड़न से बचने के लिए जरूरी बातें
अक्सर यह देखा जाता है कि दो राजनीतिक दलों(Political Parties) के बीच क झड़प का शिकार पत्रकार(Bullying) बन जाते है। इसलिए अगर आप चुनावी रिपोर्टिंग पर निकलने वाले है तो सबसे पहले निम्न निर्देशो को याद रख लेवे।
- रिकॉर्ड किए गए सभी तरह के मैटेरियल को किसी हार्ड ड्राइव में ट्रांसफर कर लें।
- अपने साथ ले जाने वाले मेमोरी कार्ड या ड्राइव में कोई भी महत्वपूर्ण कंटेंट ना छोड़ें।
- सभी तरह के अकाउंट और एप्स से लॉगआउट कर लें।
- अपने मोबाइल और लैपटॉप से ब्राउजिंग हिस्ट्री को डिलीट कर दें।
ऐसा करने से लोग आपके ईमेल और सोशल मीडिया अकाउंट्स(Social Media Accounts) वगैरह तक नहीं पहुंच पाएंगे।
इसके अतिरिक्त अन्य जरूरी तैयारियां यह भी है कि
- अपने मोबाइल, लैपटॉप या मैकबुक वगैरह में पासवर्ड लगा दें।
- रिमोट वाइप (Remote wipe) का फंक्शन भी ऑन कर दें।
- याद रहे कि रिमोट वाइप एक ऐसा सिक्योरिटी फीचर है जिसके द्वारा आप कहीं से भी (किसी दूसरे मोबाइल या कंप्यूटर से) अपने मोबाइल का डेटा डिलीट कर सकते हैं।
- मोबाइल चोरी होने या पुलिस के द्वारा ज़ब्त किए जाने की स्थिति में ऐसा करने की ज़रूरत पड़ सकती है।
- अपने साथ कम से कम, तकनीकी डिवाइस जैसे मोबाइल, कैमरा, हार्ड ड्राइव, इत्यादि ले जाएं।
चुनावी रिपोर्टिंग करते वक्त अगर आप टारगेट किए जा रहे हैं
अक्सर यह देखा जाता है कि चुनावी सरगर्मियों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया और दूसरे प्लेटफॉर्म पर मुहिम चलाई जा सकती है, इस तरह की मुहिम के द्वारा पत्रकारों को बदनाम करने की कोशिश की जाती है और उनके कामों से लोगों का भरोसा खत्म करने की चेष्टा की जाती है।इस तरह की मुहिम किसके द्वारा छेड़ी जाती है? और उसका असली जिम्मेदार कौन होता है? इसका पता लगाना बहुत मुश्किल है क्योंकि इस मुहिम में इंसानों के अलावा कंप्यूटर बॉट (Bot) भी शामिल होते हैं।
बॉट अकाउंट
- बॉट ऐसे अकाउंट्स(Bot Accounts) होते हैं जिनको इंसान नहीं बल्कि कंप्यूटर ही चलाता है।
- बॉट सोशल मीडिया पर इंसानों के तौर तरीकों से सीखता है और फिर वह उन्हीं की तरह ग़लत बयानी और प्रोपेगंडा करता है।
- इस तरह की स्थिति में इंसानी और बॉट अकाउंट के बीच फर्क करने से पत्रकारों की मदद हो सकती है।
- उनको कई तरह के अकाउंट से धमकियां दी जाती हैं तो अगर वह बॉट और असली अकाउंट्स के बीच फर्क़ कर लें तो वह इस बात का पता लगा सकते हैं कि धमकी देने वाला कोई असली इंसान है या कोई बॉट अकाउंट है जिसके पीछे सिर्फ एक कंप्यूटर है।
बॉट अकाउंट की पहचान एवं प्रबंधन
- जिन सोशल मीडिया अकाउंट्स के द्वारा आपको परेशान किया जा रहा है, उसकी जांच परख कीजिए और यह देखिए के वह एकाउंट्स कब बनाए गए हैं।
- ऐसा कोई अकाउंट जो पिछले कुछ दिनों के अंदर बनाया गया है या फिर पिछले दिनों में ही उससे चीजें या सामग्रियां पोस्ट की जानी शुरू हुई हैं तो वह बॉट अकाउंट हो सकता है।
- यह चेक करें कि उस अकाउंट में क्या डिटेल्स दी गई हैं।
- यह देखें कि उसमें अकाउंट चलाने वाले की लोकेशन या फिर जन्मतिथि जैसी कोई जानकारी दी गई है या नहीं।
- अगर इस तरह की मूलभूत जानकारियां नहीं दी गई हैं तो इसका मतलब यह हो सकता है कि वह एक बॉट अकाउंट है।
- फर्जी अकाउंट में आमतौर पर उसे चलाने वाले की कोई असली तस्वीर नहीं लगी होती है।
- उनमें स्टॉक इमेजेज़ या दूसरे फेक अकाउंट्स से लेकर फोटो लगा दिए जाते हैं।
- ऐसी स्थिति में पत्रकार उनके फोटो को गूगल पर डालकर यह देख सकते हैं कि वह फोटो और कहां-कहां इस्तेमाल किया गया है।
- यह देखें कि उस अकाउंट से किस तरह की बातें पोस्ट की गई हैं।
- अगर उस अकाउंट से ज़्यादातर रिट्वीट किए जा रहे हैं या फिर सिर्फ हेडलाइन या लिंक देकर दूसरों के पोस्ट ट्वीट किए जा रहे हैं तो वह अकाउंट फर्जी हो सकता है।
- यह भी ध्यान में रहे कि बॉट किसी से बातचीत की प्रक्रिया को अंजाम नहीं दे सकता है।
- अगर उस अकाउंट के फॉलोअर्स कम हैं तो इस बात की संभावना ज़्यादा है कि वह बॉट अकाउंट हो।
- अगर किसी अकाउंट के फॉलोअर्स कम हैं लेकिन उसकी पोस्ट पर लाइक और रिट्वीट ज़्यादा हैं तो इस स्तिथि में भी वह बॉट हो सकता है।
- यह देखें कि संदिग्ध बॉट को किस तरह के अकाउंट के द्वारा फॉलो किया जा रहा है और उनके द्वारा किस तरह की बातें शेयर की जा रही हैं।
- बहुत सारे बॉट एकाउंट्स के द्वारा एक ही समय में एक तरह की पोस्ट को शेयर किया जाता है।
- अकाउंट का नाम और टि्वटर हैंडल (जो @ से शुरू होता है( को मिलाकर देखें. अगर नाम और हैंडल एक दूसरे से नहीं मिलते हैं तो वह अकाउंट फर्जी हो सकता है।
- पत्रकार चाहें तो ऐसे बॉट अकाउंट्स को ब्लॉक या म्यूट कर सकते हैं जिनके द्वारा उनको परेशान किया जाता है।
- साथ ही यह भी बेहतर है कि वह इस तरह के अकाउंट्स को रिपोर्ट करें।
- रिपोर्ट करते समय धमकी भरे पोस्ट या कमेंट और अकाउंट के स्क्रीनशॉट भी सोशल मीडिया कंपनी के हवाले कर सकते हैं।
- अगर आगे चलकर आप इस मामले में अदालत जाते हैं तो सोशल मीडिया पर दर्ज यह रिपोर्ट आपके काम आ सकती है।
चुनावो के वक्त रिपोर्टिंग में कहीं फँस जाने वक्त क्या करें?
अक्सर यह देखा जाता है कि चुनावों में रिपोर्टिंग करते करते किसी न किसी मुश्किल में पत्रकार फँस जाता है और एक पत्रकार के मोबाइल, लैपटॉप, मैकबुक और कैमरे वगैरह में कई महत्वपूर्ण और खुफिया क़िस्म के मैटेरियल होते हैं इस स्थिति में अगर वह कभी गिरफ्तार हो जाता है तो उसके मोबाइल और अन्य वस्तुओं को ज़ब्त करके उनकी तलाशी ली जा सकती है इसलिए इस बात की जानकारी जरूरी है कि अपने पेशे से जुड़े मैटेरियल को पुलिस या दूसरे लोगों की निगाह से बचाने के लिए क्या किया जाए।
पत्रकार अपनी रिपोर्टिंग मटेरियल को सुरक्षित करने के लिए निम्न काम करें
- यह चेक करें कि आपके मोबाइल और कमरे इत्यादि में क्या-क्या इंफॉर्मेशन मौजूद हैं।
- अगर उनमें कोई संवेदनशील इंफॉर्मेशन हो या ऐसी कोई भी चीज़ मिले जिससे आपको कोई खतरा हो सकता है तो आप उसका बैकअप लेकर उसे डिलीट कर दें।
- यह ध्यान में रखें कि डिलीट किए हुए मैटेरियल या सामग्री को भी दोबारा स्टोर किया जा सकता है इसलिए सिर्फ डिलीट करने से खतरा नहीं टलता बल्कि यह ज़रूरी होता है कि विशेष कंप्यूटर प्रोग्राम की सहायता से उन्हें स्थाई रूप से डिलीट किया जाए।
- मोबाइल के अंदर उसके हार्डवेयर के अलावा, क्लाउड में भी मैटेरियल मौजूद होते हैं इसलिए मोबाइल में हार्डवेयर के अलावा गूगल फोटो या आईक्लाउड को भी चेक करें और वहां से भी मैटेरियल को डिलीट करें।
- व्हाट्सएप और मैसेंजर जैसे एप्लीकेशंस को भी चेक करें अगर वहां भी कोई ऐसी इंफॉर्मेशन मिले जिसकी वजह से किसी खतरे की संभावना हो तो उसको सेव करके वहां से डिलीट कर दें।
- ध्यान रहे कि व्हाट्सएप में सभी तरह के मैटेरियल आईक्लाउड या गूगल ड्राइव वगैरा से जुड़े क्लाउड सर्विस में सुरक्षित होते हैं।
- यह तय करें कि आपको अपने मैटेरियल का बैकअप कहां रखना है।
- आप यह खुद ही यह फैसला करें कि क्लाउड, एक्सटर्नल हार्ड ड्राइव या फ्लैश ड्राइव वगैरह में से कहां मटेरियल रखना ज़्यादा उचित होगा।
- पत्रकारों को अपने मोबाइल, कैमरे और लैपटॉप वगैरह में से अपने मटेरियल का एक बैकअप रखना चाहिए क्योंकि अगर उनके मोबाइल वगैरह को ज़ब्त कर लिया जाता है या यह चोरी हो जाते हैं तो आपके पास जरूरी मैटेरियल मौजूद रहेंगे।
- यह उचित होगा कि अपने मैटेरियल का बैकअप लेने के बाद उसमें खुफिया लॉक लगा दें।
- ऐसा करने के लिए आप अपने एक्सटर्नल ड्राइव या फ्लैश ड्राइव में इनस्क्रिप्शन लगा सकते हैं या फिर आप अपने मोबाइल और लैपटॉप वगैरह में भी इनस्क्रिप्शन सेट कर सकते हैं लेकिन ऐसा करने से पहले आप यह जरूर मालूम कर लें कि इनस्क्रिप्शन प्रयोग करने के बारे में आपके देश का कानून क्या कहता है, ताकि उसके प्रयोग से होने वाली किसी भी कानूनी उलझन से सुरक्षित रहा जा सके।
- अगर आपको शक हो कि आप किसी के निशाने पर हैं या कोई आपका हार्ड ड्राइव चुराने की कोशिश कर रहा है तो आप अपना हार्ड ड्राइव अपने घर में न रखकर कहीं और रखें।
- अपने मोबाइल और लैपटॉप वगैरह में पिन लॉक लगाकर रखें।
- जितना बड़ा पिन होगा उसका पता लगाना उतना ही मुश्किल होगा।
- रिमोट वाइप का प्रयोग करते हुए अपने मोबाइल या कंप्यूटर को लॉक कर दें।
चुनावी रैली या प्रदर्शन के वक्त रिपोर्टिंग से पहले की जरूरी बातें
अक्सर यह देखा जाता है कि चुनाव के दिनों में पत्रकार आमतौर से धरना प्रदर्शन, रैली और भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर जाते हैं, ऐसे मौक़े पर उनके साथ छेड़छाड़ या हमले किए जाने की घटनाएं भी सामने आती रहती हैं।
सीपीजे की रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2018 में हैदराबाद के अंदर तेलुगु भाषा के न्यूज़ चैनल ‘मोजो टीवी’ से जुड़े 2 पत्रकारों पर हमला किया गया था, यह हमला एक राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया था इसी तरह राजनैतिक पार्टियों के संभावित समर्थकों की ओर से ही एक लाइव शो के दौरान ‘टीवी9 मराठी’ चैनल के कई मीडियाकर्मियों पर भी हमला किया गया था।
इसलिए राजनीतिक रैलियो और प्रदर्शन के दौरान पत्रकारों की निम्न सावधानियों को हमेसा याद रखना चाहिए।
चुनावी रैलियों की कवरेज के वक्त की सावधानी
- यह चेक कर लें कि आपके पास प्रेस कार्ड और अन्य सही कागजात मौजूद हैं।
- फ्रीलांस पत्रकार अपनी स्टोरी कमीशन करने वाली संस्था की ओर से एक लेटर लिखवा लें।
- पत्रकार प्रेस कार्ड सामने तभी रखें जब उससे कोई समस्या पैदा होने की संभावना न हो।
- उसे गले में न टांगें बल्कि बेल्ट में लगाकर रखें।
- भीड़ के मूड का अंदाजा लगाते रहें।
- अगर संभव हो तो वहां मौजूद दूसरे पत्रकारों को भी भीड़ के मूड को समझने के लिए कहें।
- ज़रूरत हो तो अपने साथ कोई दूसरा रिपोर्टर या फोटोग्राफर भी ले जाएं।
- ऐसे कपड़े पहन कर जाएं जिन पर आपकी मीडिया कंपनी का कोई नाम न छपा हो और अगर जरूरत पड़े तो अपनी गाड़ी और दूसरे उपकरणों या सामान से भी अपनी कंपनी का लोगो हटा दें और मजबूत जूते पहन कर जाएं।
- हालात बिगड़ने के बाद बचकर भागने का कोई उपाय सोच कर रखें।
- ग्राउंड पर पहुंचने के बाद और रिपोर्टिंग शुरू करने से पहले इस तरह का कोई तरीक़ा सोच लें।
- अपनी गाड़ी को किसी सुरक्षित जगह पर खड़ी करें या यह सुनिश्चित कर लें कि जरूरत पड़ने पर आपको कोई दूसरी सवारी मिल जाएगी।
- अगर स्थिति बिगड़ने लगे तो लोगों से सवाल न करें और उस जगह के आसपास न भटके।
- अगर आप कुछ दूर रह कर उस जगह के बारे में रिपोर्टिंग करना चाहते हैं तो अपने किसी साथी को अपने पास रखें।
- किसी ऐसी सुरक्षित जगह पर खड़े हों जहां से आप बाहर की तरफ निकल सकते हों।
- ऐसे रास्ते का जरूर पता लगा लें जहां से आप अपनी गाड़ी या दूसरी सवारी तक सुरक्षित पहुंच सकते हों।
- अगर हालात खराब होने की ज़्यादा संभावना हो तो आप अपने साथ सिक्योरिटी गार्ड को भी ले जा सकते हैं, इससे ग्राउंड पर आपका समय बचेगा।
- कार्यक्रम या रैली के दौरान पत्रकारों के लिए बने विशेष एरिया में ही रहें।
- जब तक बाहर पूरी तरह से शांति और सुकून का माहौल नज़र न आए वहां से न निकलें और यह भी पता कर लें कि वहां पुलिस पत्रकारों की मदद के लिए मौजूद है या नहीं।
- अगर लोग, राजनेता या दूसरे वक्ता, मीडिया के साथ अच्छे से पेश नहीं आ रहे हैं तो उनकी बदज़ुबानी को बर्दाश्त करने के लिए खुद को तैयार कर लें।
- ऐसे समय में आप बस अपना काम करें और उनकी बदतमीज़ी का जवाब न दें।
- भीड़ के साथ ना उलझें।
- यह हमेशा याद रखें कि आप एक प्रोफेशनल हैं।
- अगर भीड़ की तरफ से हंगामा होने या पत्थरबाजी वगैरह की उम्मीद हो और आप फिर भी वहां जाकर रिपोर्टिंग करना चाहते हों तो उस समय हुड वाला, वाटरप्रूफ और मजबूत बंप कैप पहन कर जाएं।
- अगर स्थिति ज़्यादा गंभीर हो और रिपोर्टिंग का काम पूरा करना ज़्यादा मुश्किल हो जाए तो उस समय ज़्यादा हिम्मत न दिखाएं और वापस हो जाएं।
- निश्चिंत होकर अपने साथियों और सुपरवाइज़र को वास्तविक स्थिति के बारे में बताएं और उनसे स़ॉरी कह दें।
निष्कर्ष
यह कुछ जरूरी बातें थी जो एक पत्रकार को चुनावो के वक्त रिपोर्टिंग करने के लिए मददगार हो सकती है क्योंकि भीड़ से खतरा पत्रकारों को भी उतना ही होता है जितना उस भीड़ से उलझने वालो को होता है। एक पत्रकार को सदैव अपनी गरिमा में रहकर पूरी निष्पक्षता से चुनावी रिपोर्टिंग करनी चाहिए। अतः अगर आप एक चुनावी रिपोर्टर के तौर पर धरातल में उतरने जा रहे है तो उन सारी बातों को सजगता से याद कर लेवे जो ऊपर के दिशा निर्देशों में आपको बतलाई गयी है। हालाँकि अगर पत्रकार चुनावी रिपोर्टिंग के दौरान अपनी गरिमा भूल जाए तो उसपर भी लीगल एक्शन(Possible Legal actions on journalists) लिए जा सकते हैं।